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क्या ये है कहानी चुनाव आयुक्त के इस्तीफ़े की ? चुनाव आयोग किसके आगे विवश है ?क्या ये है कहानी चुनाव आयुक्त के इस्तीफ़े की ? चुनाव आयोग किसके आगे विवश है ?

आजकल इस्तीफ़े का दौर अब बढ़ चूका है | कभी कुस्ती संघ के अध्यक्ष इस्तीफ़ा दे देते हैं तो कभी ED के लोग | अब ऐसे में तत्काल में चुने गए चुनाव आयोग के चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफ़ा आम जनता को हजम नहीं हो रहा है | बंगाल के दौरे के बाद अरुण गोयल का चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा देना, बंगाल के चुनाव और चुनाव आयोगों के संबंधों को भी नए सिरे से रोशनी में ला रहा है। इस राज्य में चुनाव आयोग को जिस राजनीतिक संदेह से देखा जाता है उसका अंदाजा ममता बनर्जी के बयानों से लगाया जा सकता है | आज दो दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कमेटी विचार कर रही है , जिसमें सरकार का ही बहुमत होगा। अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया। आईएएस की सेवा से उन्होंने वीआरएस लिया, रिटायर हुए और इसके 24 घंटे के भीतर चुनाव आयुक्त बना दिए गए। कई नामों की सूची में से अरुण गोयल का चुनाव हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के भी कान खड़े हो गए | क्योंकि बात ही कुछ ऐसी थी | आखिर इतनी हड़बड़ी, इतनी जल्दबाजी क्यों? क्या अपने किसी खास को चुनाव आयुक्त बनाने के लिए यह सब किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल के मामले में ही कहा था कि चुनाव आयुक्त यस मैन नहीं होना चाहिए। ऐसा होना चाहिए जो प्रधान मंत्री के मामलों की भी जांच कर ले। मगर जिस आयुक्त को यस मैन की तरह देखा गया उन्होंने किस बात पर नो कह दिया, किस बात पर इस्तीफा दे दिया। सबसे बड़ी बात तो यह है की जिसे सरकार का समर्थन मिला उसका इस्तीफ़ा झट से स्वीकार कर लिया गया।

आखिर वो क्या वजहें होंगी जीने कारण अरुण गोयल ने इस्तीफ़ा देना मंजूर किया | लोग तो यह भी कह रहे हैं की शायद बंगाल में चुनावी तैयारियों को लेकर अरुण गोयल और मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के बीच टकराव बढ़ गया होगा | तभी तो अरुण गोयल ने अपने इस्तीफे का ईमेल मुख्य चुनाव आयुक्त को भेजा तक नहीं। अरुण गोयल ने अपना इस्तीफा सीधे राष्ट्रपति को भेजा और 24 घंटे के भीतर स्वीकार भी हो गया। अलग अलग मीडिया रिपोर्ट के जरिए इसी तरह की जानकारियां सामने आई हैं। खबरें छपी हैं कि गृह सचिव अजय भल्ला ने मध्यस्थता करने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए। टकराव इतना तगड़ा था की कोइ भी अरुण गोयल को रोक नहीं सका या रोकना नहीं चाहा | अरुण गोयल ने अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को भेजा और उसे 24 घंटे में स्वीकार कर लिया गया | एक ऐसा ही मामला साल 2019 में आया था जिसमे अशोक लवासा ने 18 अगस्त 2 हज़ार 20 को चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया जो 13 दिन बाद स्वीकार किया गया। इस इस्तीफ़े के पीछे भी एक बड़ा कारण रहा होगा |

टाइम्स ऑफ इंडिया में भारती जैन की रिपोर्ट अरुण गोयल के इस्तीफे में कुछ नए एंगल जोड़ती है। इसमें लिखा है कि अरुण गोयल के इस्तीफे से एक दिन पहले तक चुनाव आयोग में सब कुछ सामान्य था। 7 मार्च को गोयल और राजीव कुमार ने 27 अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के साथ बातचीत की। इसका आयोजन विदेश मंत्रालय ने किया था। द हिंदू के महेश लांगा की रिपोर्ट से अलग इस रिपोर्ट में भारती जैन ने लिखा है कि बंगाल में अरुण गोयल की तबीयत वाकई खराब हुई थी। पांच तारीख की सुबह ओबरॉय ग्रैंड होटल में उनके लिए एक डॉक्टर को भी बुलाया गया। दवा शुरू हुई लेकिन अरुण गोयल को फिर भी ठीक नहीं लगा। इसलिए वह प्रेस वार्ता में शामिल नहीं हुए। उसके बाद अरुण गोयल जब वापस दिल्ली आए तो पूरी टीम के साथ एक ही फ्लाइट में आए, जिसमें सीईसी राजीव कुमार भी थे। • 8 मार्च को गृह सचिव अजय भल्ला के साथ बैठक थी, जिसमें तय होना था कि कहां कैसे तैनाती होगी। – उसी दिन अरुण गोयल ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज दिया। यह जानकारी महेश लांगा ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखी है | दोनों की रिपोर्ट में इतना ही अंतर है कि भारती जैन कहती हैं, अरुण गोयल की तबीयत खराब थी। डॉक्टर ने देखा था। महेश लांगा की रिपोर्ट कहती है, अरुण गोयल फिट आदमी हैं। उनकी तबीयत ऐसी नहीं थी कि कोई पद से इस्तीफा दे दे। अब क्या सच है क्या झूठ ये तो ऊपर वाला ही जनता है | कोलकाता में जन गर्जना रैली के दौरान ममता बनर्जी ने इस्तीफा देने वाले अरुण गोयल को सलामी दी। शुरुआत में ही ममता बनर्जी ने कहा, सबसे पहले इस्तीफा देने वाले चुनाव आयुक्त को सलाम करना चाहती हूं।

आपको बता दें कि जब अरुण गोयल चुनाव आयुक्त बनाए गए तब चुनाव आयुक्त का पद छह महीने से खाली था। इतने लंबे समय से चुनाव आयुक्त का पद खाली रहे, यह ठीक बात तो नहीं। तो इस बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने सुनवाई चल रही थी। तभी अरुण गोयल की फटाफट नियुक्ति कर दी जाती है। यह वही अरुण गोयल हैं जिनके चयन को मिली चुनौती की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसे चुनाव आयुक्त चाहिए जो यस मैन ना बने। जो घुटनों पर रेंगे नहीं बल्कि जरूरत पड़े तो प्रधान मंत्री पर भी कार्रवाई करें।.. एडीआर ने उनकी नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की थी और प्रशांत भूषण ही वकील थे। कहा कि जिस तरह से अरुण गोयल की नियुक्ति हुई है उससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रभावित हुई है।. सुप्रीम कोर्ट ने भी हैरानी जताई कि उनके चयन में इतनी जल्दबाजी क्यों मचाई गई। कोर्ट ने सरकार से 24 घंटे के भीतर जानकारी मांगी कि बताइए यह सब कैसे हुआ। जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि चयन को लेकर कोई नियम नहीं है, लेकिन हम देखना चाहते हैं कि क्या आपकी प्रक्रिया से ऐसे व्यक्ति का चुनाव हो सकता है जो स्वतंत्र हो। सरकार का यह तर्क था कि चार अफसरों के बैच में वे सबसे युवा हैं, इसलिए उनका चयन ठीक रहेगा तक पदभार संभाल सकें।

अब अरुण गोयल का इस्तीफा मंजूर हो चुका है तो अब नए कानून के अनुसार प्रधानमंत्री दो दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति तय करेंगे। अधीर रंजन चौधरी के अनुसार ज्ञानेश कुमार और बलविंदर संधू चुनाव आयुक्त बनेंगे | चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बैठक खत्म होने के बाद मीडिया के सामने आए थे अधीर रंजन चौधरी | उन्होंने सरकार पर चुनाव आयुक्त को लेकर कुछ गंभीर बाते भी कही | इस वीडियो के माध्यम से आप देख सकते हैं |

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