कभी समाजवादी के प्रेमी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को सपा से करीब 25 महीने पुराना रिश्ता तोड़ लिया है और अखिलेश यादव पर निशाना भी साधा है | विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2022 में भाजपा छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी ने अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सपा का साथ छोड़ दिया है। अब इसके पीछे स्वामी प्रसाद मौर्य का क्या चुनावी दांव है यह तो कह पाना मुश्किल है | ऐसे में उन्होंने मंगलवार को सपा की प्राथमिक सदस्यता व एमएलसी पद से त्यागपत्र दे दिया। मौर्य ने सपा अध्यक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘अखिलेश यादव ने खुद ही पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की हवा निकाल दी है।’ स्वामी ने अखिलेश को पत्र लिखकर सपा की प्राथमिक सदस्यता से पहले त्यागपत्र दिया फिर विधान परिषद के सभापति को पत्र लिख एमएलसी पद भी छोड़ दिया। उन्होंने पत्र में लिखा, ‘चूंकि मैंने सपा की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है इसलिए नैतिकता के आधार पर विधान परिषद की सदस्यता से त्यागपत्र दे रहा हूं।’ यह त्याग पत्र अखिलेश यादव के लिए एक बड़ा झटका था | उन्होंने पत्रकारों से कहा कि, ‘अखिलेश की सपा दफ्तर में पूजा देखकर तो भाजपा भी दंग है।’ उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि, ‘जो खुद अंधेरे में है वह दूसरों को क्या रास्ता दिखा सकता है। मुलायम सिंह यादव ने कभी विचारधारा के खिलाफ काम नहीं किया। अखिलेश की धर्मनिरपेक्षता अब सामने आ गई है। सपा के लोग समाजवाद से दूर चले गए हैं। कोई भी सम्मान और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाला नेता या संगठन अखिलेश के साथ नहीं चल सकता है।’
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स्वामी क्वे तीखे बोलो में कुछ मीठे स्वर भी थें | उन्होंने पल्लवी पटेल से लेकर शिवपाल यादव तक की तारीफ की तो प्रो. रामगोपाल पर हमला भी किया। कई महीनों की चुप्पी को तोड़ते हुए उन्होंने कहा कि, ‘जब पल्लवी ने पीडीए की बात उठाई तो उनके भी खिलाफ बयानबाजी होने लगी। इन लोगों को शिवपाल से सीखना चाहिए। उन्होंने इसे पार्टी का आंतरिक मामला कहा, लेकिन रामगोपाल का बयान तो कुछ औरही था। जब तक रामगोपाल सपा में रहेंगे यहां अंधेरा छाया रहेगा। मैं पद के लिए न कभी आया हूं और न गया हूं। मैंने उनका लाभ का पद भी वापस कर दिया है।’ अब ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पार्टी भी बना ली है और उसको जनता के बीच भी ला रहे हैं | अखिलेश यादव को एक के बाद एक झटका मिल रहा है | कभी इंडिया गठबंधन में सीटों के बटवारे को लेकर तो कभी इस्तीफ़े को लेकर तो कभी नेताओं को लेकर | अब देखना यह होगा कि इन सभी मुश्किलों को पार करके अखिलेश यादव 80 सीटों को जीत पाएंगे या फिर यह बात भी हवा-हवाई हो जायेगी |