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समाजवादी पार्टी में आंदोलन और नेताओं के इस्तीफों से हलचल, पीड़ित समूहों की आवाज़ बुलंद। चुनाव से पहले घेराबंदी और आपसी असमंजस में पार्टी की दिक्कतें। बीजेपी के खिलाफ चल रहे 'पीडीए' के ब्रह्मास्त्र की हार का असर सपा पर बीत रहा है। नेताओं की असंतुष्टि और उपेक्षा का मुद्दा हो गया है, जिससे पार्टी को चुनावी मैदान में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।समाजवादी पार्टी में आंदोलन और नेताओं के इस्तीफों से हलचल, पीड़ित समूहों की आवाज़ बुलंद। चुनाव से पहले घेराबंदी और आपसी असमंजस में पार्टी की दिक्कतें। बीजेपी के खिलाफ चल रहे 'पीडीए' के ब्रह्मास्त्र की हार का असर सपा पर बीत रहा है। नेताओं की असंतुष्टि और उपेक्षा का मुद्दा हो गया है, जिससे पार्टी को चुनावी मैदान में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।

कलोकसभा चुनाव सर पर है और समाजवादी पार्टी के नेताओं की सरगर्मी सातवे आसमान पर है | आये दिन समाजवादी पार्टी के नेताओं की कुछ ना कुछ ख़बरें आती रहती हैं और जुबान फिसलती रहती है | लेकिन इस बार जुबान नहीं बल्कि सपा के नेता फिसल रहे हैं | दरअसल, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचि स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफ़ा देने के बाद अब सपा पार्टी के दूसरे महासचिव ने भी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है | इस्तीफ़े से याद आया की यह बात कोइ नयी बात नहीं है | आपको बता दें कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने पिछड़ों के कई नेताओं को एकत्र किया था लेकिन वह सब एक-एक कर अखिलेश का साथ छोड़ते चले गए। इस कड़ी में सबसे पहले राजभर समुदाय के नेता व सुभासपा प्रमुख ओम राजभर ने सपा का साथ छोड़ा | इसके बाद लोनिया बिरादरी के नेता दारा सिंह चौहान भी सपा की विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे और हालही में अखिलेश यादव के दोस्त और रालोद चीफ़ जयंत चौधरी ने भी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से किनारा कर लिया |

बीजेपी को हराने के लिए जिस ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को ‘ब्रह्मास्त्र’ मानकर सपा चल रही थी उसकी हवा तो उसके अपने ही निकाल रहे हैं। पार्टी में पीडीए की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए एक हफ्ते के अंदर ही रविवार को दूसरे राष्ट्रीय महासचिव ने त्यागपत्र दे दिया। राज्यसभा चुनाव में टिकटों के वितरण से नाराज पूर्व सांसद शलीम शेरवानी ने मुस्लिमों की उपेक्षा का आरोप लगाया है | चुनाव से पहले सपा के भीतर चल रहा गतिरोध खुलकर सामने आने लगा है। अखिलेश यादव की ‘पीडीए’ मुहिम को झटके पर झटका लग रहा है। पीडीए के ही नेता पार्टी में पीडीए को महत्व न दिए जाने का गंभीर आरोप लगा रहे हैं। सबसे पहले सपा के राष्ट्रीय महासचिव व एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य ने पाटी में भेदभाव का आरोप लगाते हुए 13 फरवरी को त्यागपत्र दिया था। यह त्यागपत्र उसी दिन दिया गया जिस दिन सपा के राज्यसभा प्रत्याशियों ने नामांकन किया था।

13 फरवरी के दिन ही सपा विधायक व अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने राज्यसभा टिकट वितरण में नाराजगी जताते हुए अपना वोट पार्टी के उम्मीदवारों को न देने का एलान किया था। पल्लवी राज्यसभा में पिछड़े व अल्पसंख्यक को प्रत्याशी न बनाए जाने से खफा हैं। उन्होंने भी आरोप लगाया कि पार्टी में पीडीए की ही उपेक्षा हो रही है। दो दिन पहले 16 फरवरी को सपा के प्रदेश सचिव कमलाकांत गौतम ने भी पार्टी में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। रविवार को बदायूं के पांच बार के सांसद सलीम शेरवानी ने पार्टी में मुसलमानों की उपेक्षा से परेशान होकर महासचिव पद से त्यागपत्र दे दिया। राज्यसभा में किसी मुसलमान को न भेजे जाने से वे नाराज हैं | उन्होंने अगले कुछ हफ्तों के भीतर अपने राजनीतिक भविष्य
के बारे में निर्णय लेने की बात कही है। उन्होंने पत्र में इसका उल्लेख भी किया कि भले ही मेरे नाम पर नहीं लेकिन, पार्टी किसी एक मुस्लिम पर तो विचार करती। इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य पद से इस्तीफा दे चुके हैं। उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि वह इस बार भी लोकसभा चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहे थे लेकिन, सपा ने धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बना दिया। ऐसे में शेरवानी राज्यसभा प्रत्याशी बनाना चाहते थे, जिस पर पार्टी ने गौर नहीं किया। इसी नाराजगी में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अब क्या होगा समाजवादी पार्टी की 80 सीटों पर जीत का नतीजा यह तो उनके ख़िलाफ़ बहती हुई राजनीति की हवा ही तय करेगी |

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