Sat. Jul 27th, 2024

वैसे तो भारत देश मे 29 राज्य है और अलग-अलग राज्य अपनी प्राकृतिक खूबसूरती, वातवरण व हिल स्टेशनों के लिए जाने जाते है । लेकिन प्रकृति ने खूबसूरती के संगम से अकेले मध्यप्रदेश को ही नवाज है जिसमे जल ,जंगल ,जमीन के साथ-साथ प्रकृति की अद्तभूत खूबसूरती भी शामिल है । जहाँ एक ओर मांडू , पंचमढ़ी, खजुराहो है तो दूरी तरफ अमरकंटक ,जबलपुर और चंबल है तो वहीं मालवा की माटी की सुगंध और निमाड़ का तीखापन लिए कपास भी है ।

इन्हीं सबसे अलग अपनी एक पहचान रखने वाला बैतूल जिले का कुकरू खामला ग्राम अपनी एक अनोखी प्रकृति के सौन्दर्य से घिरा हुआ एक छोटा लेकिन खूबसूरत हिल स्टेशन है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा कुकरू अपने कॉफी बागानों की बेशकीमती कॉफ़ी के लिए जाना जाता है, जो दुनिया की कुछ बेहतरीन कॉफी बीन्स का उत्पादन करता हैं, जिसमे एक अद्वितीय स्वाद और सुगंध है। कॉफी प्रेमियों और प्राकृतिक सुंदरता की सराहना करने वालों के लिए कुकरू खामला के कॉफी बागान जो पूर्व में सेन्ट्रल इण्डिया के इकलौते कॉफी बागान थे। जिसकी खोज 1823 में की गयी थी | उसके बाद 1900 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश महिला मिस फ्लोरेंस हेंड्रिक्स ने इस क्षेत्र में कॉफी की खेती का प्रयोग शुरू किया। इस क्षेत्र की उपजाऊ मिट्टी, ऊँचाई और ठंडी जलवायु कॉफ़ी उगाने के लिए एकदम उपयुक्त साबित हुई। उसके बाद इसे 1901 में अंग्रेजी छावनी के रूप में तब्दील कर एक गेस्टहाउस बनाया गया जिसके चारों ओर खुशबूदार और बेहतरीन कॉफी बीन्स अपनी खुशबू बिखेरते चले गए | इसके बाद 1970 में भारतीय शासन ने इस कॉफी बागान को अपने अधीन कर लिया।

कुछ वर्षो तक कुकरू ‘सेंट्रल इण्डिया’ का इकलौता कॉफी बागान था | उसके बाद कॉफी भारत के तीन क्षेत्रों में उगाई जाने लगी जिसमे कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु ‘दक्षिणी भारत’ के पारम्परिक कॉफ़ी उत्पादक क्षेत्र बने | इसके बाद देश के पूर्वी तट में उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के गैर पारम्परिक क्षेत्रों में नए कॉफ़ी उत्पादक क्षेत्रों का विकास हुआ है। इधर कुकरू का बागान ख़त्म होने लगा और 44 हेक्टेयर में फैला ये बागान अब मात्र 12 से 15 हेक्टेयर में सिकुड़ गया। हालही में कुकरू कॉफी बागान को संरक्षित करने में वनविभाग में आये युवा अधिकारी विजय आनदंम ने इस कॉफी बागान को संरक्षित करने का ज़िम्मा उठाते हुए इसे पुनः इसके मूल स्वरूप में इको टूरिज़्म हब बनाते हुए सुरक्षित किया है। इधर राज्य सरकार के जिला कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी ने जिला पंचायत सीओ अक्षत जैन के साथ मिलकर कुकरू खामला को भी इसकी सीमा से लगे महाराष्ट्र के चिखलदरा की तरह कॉफी की खेती के लिए किसानो को जाग्रत करना शुरू कर दिया है। इसकी मुख्य वजह ये है कि कुकरू में उगने वाली कॉफी में भारत के अन्य राज्यों में पैदा होने वाली कॉफी की अपेक्षा कैफीन की मात्रा लगभग 10 प्रतिशत ज्यादा है। सरकार का वनविभाग, कृषि विभाग और हॉर्टिकल्चर विभाग मिलकर इस कुकुरू को जीवनदान देते हुए विकसित कर सकता है, जिससे इस हिल स्टेशन को सुंदर बनाते हुए पुनः जीवित किया जा सकता है और गरीब आदिवासियों व बेरोजगारों को रोजगार का एक साधन प्रदान किया जा सकता है। कुकरू कॉफी बागान की घुमावदार पहाड़ियों और धुंध भरी घाटियों के बीच स्थित, ये बागान न केवल क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाता है बल्कि देश में कुछ बेहतरीन कॉफी बीन्स का उत्पादन भी करता हैं। अगर कुकरू खामला में अगर सरकार कॉफी उत्पादन बढाती है तो ये कॉफी बागान न केवल किसानों के लिए आय का एक स्रोत पैदा करेंगे ,बल्कि जीवन जीने का एक तरीका भी किसानो को मिलेगा जो स्थानीय किसान की आने वाली पीढ़ियों को खेती का एक नया तरीका भी देगा और साथ ही उनके ज्ञान और विशेषज्ञता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित भी करेगा।

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