Sat. Oct 12th, 2024

देहरादून मंगलवार को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। इसे ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ नाम दिया गया है। 182 पन्नों के इस कानूनी मसौदे में कई धाराएं और उप-धाराएं हैं। इसमें उत्तराधिकार, विवाह, विवाह-विच्छेदन और लिव इन रिलेशनशिप के बारे में नियम-कानूनों का उल्लेख किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बुराइयों के खात्मे के लिए उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए देश में सबसे मुफीद राज्य है। इस बिल का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो।

आंकड़ा बताता है कि पिछले 10 साल में लिविन रिलेशन में रहने वालों की तादाद बढ़ी है | यानी कपल बिना शादी के एक साथ रहना पसंद कर रहे हैं | लेकिन उत्तराखंड में जब से समान नागरिक संहिता कानून आया है, तब से लिविन रिलेशन का पैमाना भी काफी सख्त हो गया है | आईए इस वीडियो में बात करते हैं लिव इन के बारे में | प्रदेश में अब लिव इन के रूप में रहना आसान नहीं होगा। प्रदेश में लागू होने वाली समान नागरिक संहिता में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर नियम सख्त किए जा रहे हैं। इसके अंतर्गत लिव इन में रहने वाले युगल का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। अनिवार्य पंजीकरण न करने पर छह माह का कारावास या 25 हजार रुपये दंड अथवा दोनों का प्रविधान होगा। आपको बता दें इस एक्ट में यह प्रावधान किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए और उसको लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले पहचान करने के उद्देश्य से एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा और 21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता पिता को देनी अनिवार्य होगी। उत्तराखंड सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है ताकि ऐसे जोड़ों को कहीं रहने के लिए किराए पर मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकताओं पर कोई कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े।

विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा सहमति बनाम स्थापित सामाजिक नैतिक मानदंड से जुड़ा है। देश में हर नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कानून बनाए गए हैं और उसकी सुरक्षा की गई है लेकिन अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था में संतुलन भी जरूरी है। इसीलिए उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है। आपको यह भी बता दें कि लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उसी युगल की जायज संतान माना जाएगा। इस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे। अब देखना यह होगा की इस कानून से किसको फ़ायदा होगा और किसको नुकसान और लिव-इन में रहने वालों को उत्तराखंड की जनता सपोर्ट करेगी या नहीं |

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