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मध्यप्रदेश को ऐसे ही अज़ाब और गज़ब प्रदेश नहीं कहा जाता जल ,जंगल,ज़मीन का प्रदेश और इस में मिलने वाले प्राकृतिक खजाने से सभी वकीप है इस प्रदेश के कण कण में शंकर और माता प्रकृति निवास करती है। इस प्रदेश कई ऐसे अधभुद जीवाश्म आज भी दबे पड़े है लेकिन सरकार आंख बंद कर सिर्फ कोयला ,रेट ,हिरा निकाल रही है जिससे राजस्व को बढ़ावा मिल सके।

सरकार सिर्फ नेताओ और अधिकारी की ऊपरी आमदनी का एक स्त्रोत बनकर रहा गयी है या सब कुछ या तो ठेके पर है या सिर्फ कागज़ो पर वर्ष 2011 मध्यप्रदेश के धार जिले के कई इलाको में विलुप्त हो चुके डायनासोर के अण्डे ,हड्डिया ,सार्क के दाँत ऊँचे ऊँचे विशाल काय पेड़ के जीवाश्मों का अद्भुत खजाना हाथ लगा लेकिन सरकार तो सिर्फ कागज़ो पर चलती है।

धार जिले में इन जीवाश्म को सुरक्षित रखने दो पार्क निर्माण किये गए एक मांडू रोड पर और दूसरा धार जिले के बाघ में ,बाघ क्षेत्र अंतररष्ट्री स्तर पर अपनी पहचान रखता है। यहाँ के बाघ प्रिंट की साड़िया काफी मशहूर है यही नहीं बाघ गुफाओ के ब्रह्मण हेतु यहाँ काफी सैलानी आते है। इन्ही बाघ गुफाओ के पास फारेस्ट विभाग द्वारा जीवाश्म पार्क का निर्माण 2018 में शुरू हुआ था लेकिन सरकार की अवहेलना का शिकार ये पार्क सिर्फ अब खुद जीवाश्म में बदल गया है। तो वही मांडू रोड पर बने डायनो पार्क को ठेके पर दे दिया गया है लाखो खर्च करने के बाद भी ठेके पर चल रहे इस पार्क में रखे जीवाश्म खुद अपनी कहानी बया करते नज़र आते है।

अब अगर बात करे डायनासोर के अस्तित्व की तो सबसे पहले यही ख्याल आता है की आखिर साढ़े छह करोड़ साल पहले ऐसा क्या हुआ था कि विशालकाय जीव डायनासोर विलुप्त हो गए. ये सवाल सभी के मन में उठता होगा. भारत में भी ऐसे इलाके हैं जहां डायनासोर के जीवाश्म मिलते रहे हैं.

मध्य प्रदेश जो विश्व मे अपनी एक अलग पहचान रखता है। चारो तरफ से पहाड़ और जंगलों से घिरा एक ऐसा प्रदेश जहां एक और सतपुरा के घने जंगल व सतपुरा पर्वत श्रेणी तो वहीं दूसरी और विंदयाचल पर्वत श्रेणी और बीच मैं विशालकाय माँ नर्मदा लगातार 21 वी सदी के शुरुआती दौर से ही करोड़ों साल पहले विलुप्त हुई डाइनासोर व अन्य जीव जंतुओं एवं आदि मानवों की अवषेष मिलने का दौर जारी है। साथ ही जिस पर्यावरण बदलाव ने अतीत में इन जीवों का नामो-निशान मिटा दिया, क्या ऐसा बदलाव भविष्य में भी हो सकता है, जिससे कई और जीव विलुप्त हो जाए? इन सवालों का जवाब जीवाश्मों (फॉसिल) के अध्ययन से मिलता है. मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील के पास विश्व प्रसिद्ध बाग गुफाओं वाले इलाके में कई वर्षों से डायनासोर के अंडे, नेस्टिंग साईट, हड्डियां और दांतों के जीवाश्म मिल रहे हैं. ये पहला किस्सा नहीं है कि मध्यप्रदेश में डायनासोर के जीवाश्म मिले हैं. साल 1828 में जबलपुर के पास पहली बार डायनसोर के जीवाश्म मिले थे. वहां मांसाहारी डायनासोर पाए गए थे जिनके 60-70 घोंसले वहां मौजूद थे.

डायनासोर के अंडे और अतीत का अध्ययन किया जाए तो धार जिले के बाग इलाके के महत्व के बारे में भारत के मशहूर भूविज्ञानी और प्रोफेसर बताते हैं कि “1990 में मध्यप्रदेश की हथिनी नदी मैं 30 साल पहले डायनासोर का पहला जीवाश्म मिला था. बाग ही ऐसा स्थान है जहां डायनासोर के घोंसले, हड्डियां और दांत मिले हैं. लंबे पेड़ भी हैं जो ये बताते हैं कि साढ़े छह करोड़ साल पहले कैसा पर्यावरण रहा होगा. विज्ञान का मकसद रिकंस्ट्रक्शन का होता है. पर्यावरण को रिकंस्ट्रक्ट करने में बाग के जीवाश्म मदद देते हैं. ये बहुत बड़ी विरासत है हमें इसे संरक्षित करना चाहिए.” कई प्रोफेसर डायनासोर पर शोध करते रहे हैं। धार जिले की बाग में कई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर 2014 से रिसर्च कर रहे है “ये साईट डायनासोर के पृथ्वी से लुप्त होने के ठीक पहले की है. तो उस समय पर्यावरण में ऐसा क्या बदलाव हुआ कि डायनोसोर गायब हो गए? इस बात पर शोध करने के लिए ये साईट बहुत अहम है. भारत में सिर्फ दो ही ऐसी जगहें हैं, बाग और बालासिनोर जहां सबसे ज्यादा नेस्टिंग साईट मिलते हैं.” प्रोफेसर के मुताबिक, “डायनासोर के अंडे का आकार आम रेप्टाइल्स से बड़ा होता है. 20 सेंटीमीटर के व्यास के काफी बड़े अंडों की बाहरी सतह कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती है. उसका क्रॉस सेक्शन बताता है कि यहां पाए जाने वाले सभी डायनासोर शाकाहारी थे और उनकी प्रजाति टायटेनोसोर सायरोपोड थी.” मजेदार बात ये है कि इस इलाके में ना केवल डायनासोर आकर अंडे देते थे बल्कि उससे कई करोड़ साल पहले यहां समुद्र होने के भी प्रमाण मिलते हैं. जानकारों के मुताबिक उस समय पृथ्वी पर ऐसी घटनाएं हुई जिससे समुद्र भारत के मध्य भाग तक आ गया. कच्छ से एक भुजा समुद्र की अंदर आ गई और वो लाख वर्षों तक रही. और उसके जीव भी यहां पर आ गए. इस इलाके में 10 करोड़ वर्ष पहले समुद्र था इसलिए डायनासोर के अलावा यहां समुद्री जीवों के जीवाश्म भी मिलते हैं.

इस इलाके में समुद्री जीवों के जीवाश्म पर काम कर रहे जंतुविज्ञानी की माने तो मिजोजोइक काल के आखिरी दौर का जीवाश्म साल 2010 में खोजा और प्रोफेसर के सम्मान में इस जीवाश्म का नाम स्टीरियो-सिडेरिस “कीर्ति” रखा गया. “जीवाश्म साढ़े सात करोड़ साल पुराना है. सी अर्चिन के जीवाश्म, धार की मनावर तहसील के सीतापुरी गांव से मिले है. इस तरह की स्टार फिश समुद्र में ही पाई जाती है. यहां पर सी अरचिन (बगैर भुजा वाली स्टार फिश) की वो प्रजाति मिली है जो विश्व में कभी नहीं मिली. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम लंदन के सीनियर वैज्ञानिक रहे डा एंड्र्यू स्मिथ ने धार जाकर इस बात की पुष्टि भी की. प्रोफेसर कीर्ति द्वारा खोजी गई प्रजाति डायनासोर की तरह ही विलुप्त हो चुकी है।

समुद्री जीवाश्म एक्सपर्ट प्रोफेसर की माने तो उनको अपनी रिसर्च के दौरान यहां डायनासोर के अंडे मिल चुके हैं. उनके मुताबिक “डायनासोर बाग वाले इलाके में रहते नहीं थे केवल यहां पर अंडे देने आते थे. ये उनकी मनपसंद साईट थी. डायनासोर जब जिंदा थे उस समय कार्बनडायआक्साइड का हिस्सा ज्यादा था और आक्सीजन का कम था और ऐसा ही भविष्य में होने जा रहा है. ये अच्छा तरीका है कि हम अतीत की स्टडी करें जिससे भविष्य समझ में आए. 7 करोड़ साल पहले ग्लोबल वार्मिंग थी और अब हम फिर से ग्लोबल वार्मिंग की और बढ़ रहे है ।

करीब 30 वर्षों से इन जीवाश्मों को इकट्ठा कर रहे धार जिले के रहने वाले शौकिया जीवाश्म शोधकर्ता और पेशे से भोतिकशास्र टीचर विशाल वर्मा बताते हैं, “मांडू में फॉसिल म्यूजियम में मैंने कई जीवाश्म डोनेट किए है. 2007 में मुझे पहली बार बाग में पूरी साईट मालूम पड़ी थी, हम लोग इस साईट को बचाने के लिए काम करते हैं क्योंकि वो बहुत सुंदर है. इन्हें प्रोटेक्ट करना जरूरी होता है उसके बाद शोध होता है. मैंने एक ही जिले से चार अलग-अलग काल खंड के जीवाश्म खोजे हैं. जब समुद्र नहीं था, जब समुद्र आ गया, तीसरा जब डायनासोर किनारे पर आकर अंडे देने लगे और चौथा जब ज्वालामुखी विस्फोट हो रहे थे और उसके बाद भी डायनासोर कई हजार सालों तक बचने में सफल हुए.साथ ही विशाल वर्मा ने लगतार इस पार्क के लिए काफी संघर्ष किया है और उनका ये संघर्ष मध्यप्रदेश की धरती पर एक रूप लेने जा ही रहा था की वो सपना भी 2018 से 2024 तक आते आते अधूरे में ही लटक कर रह गया । जिसे अब धार जिले के बाघ में नेशनल पार्क में आप देख सकेंगे । जहाँ आपको डायनासोर के अंत होने से पहले के सभी जीवाश्म मिलेंगे । इस पार्क को अगर मध्यप्रदेश सरकार अपने अधीन करते हुए विकसित करती है तो इस आदिवासी क्षेत्र में टूरिज़्म के साथ साथ रोजगार के अवसर भी बढेगे। अभी तक सरकार से मद्दत न मिल पाने के अभाव में ये पार्क सिर्फ तारो की बाउंड्री की देख रेख में मौत के करीब जिंदा है । और एक चौकी दार की शरण मे पडा हुआ है । ये वही अनपढ़ चौकीदार है जिसकी वजह से आज ये पार्क थोड़ा बहोत सुरक्षित है जिसे 27 महीनों से सेलरी नहीं मिली है लेकिन फिर भी ये हार नहीं मानता इन जीवाश्म को आस-पास के इलाकों से ये ढूंढ कर यहाँ लाता है ।
डायनासोर के अंडों को आकर आदमी और पर्यटक देख सकते हैं. इसी मकसद से बाग में “डायनासोर जीवाश्म नेशनल पार्क” भी आकार ले ने जा ही रहा था की किसी ने डायनासोर की टंगे फिर तोड़ दी और उसे फिर विलुप्त होने की कतार में खड़ा कर दिया है. वैसे इस अधूरे पार्क का निर्माण कुल 89 हेक्टेयर में फैले इस नेशनल पार्क में एक म्यूजियम बनाने की कोशिश भी की गयी लेकिन इसका बजट भी सरकारी डायनासोर निगल गए उसके बाद ये पार्क खुद जीवाश्म में तब्दील होता जा रहा है इस अधूरे पार्क में विशालकाय पेड़ों और डायनासोर के अंडों के जीवाश्म उनके मूल स्वरुप में जस के तस रखे है , ताकि शोधकर्ता उसी स्थिति में जीवाश्मों को देख सके. “डायनासोर फॉसिल नेशनल पार्क का नोटिफिकेशन हो चुका है, फेंसिंग हो गई है, उसमें काफी नेस्टिंग है और जीवाश्म भी मौजूद है लेकिन इसे डेवलप करना बाकी है। इसके लिए अब फारेस्ट अधिकारी श्री सोलंकी पुनः इसे निर्मणा के लिए प्रयास कर रहे है अगर सरकार की महरबानी बरसी तो शायद बाघ के बेरोजगारों को कुछ रोजगार मिल जाये वर्ना महुआ की दारू और खजूर की ताड़ी पीओ और ज़िंदा रहो ?

फिलहाल यह वीरान सा है, एक मास्टर प्लान है जिससे अगले कुछ वर्षों में कैसा डेवलप किया जाए इसकी योजना बन जाए तो शायद इन पत्थरो में फिर से जान आ जाये।

यही नही स्थानीय जिला प्रशासन भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल पार्क से बाहर के इलाके में म्यूजियम को नया रुप देने की कोशिश की और दिया भी ये पार्क. इस इलाके का मशूहर पर्यटक स्थल मांडू है और उसके पास ही डायनासोर संग्रहालय के रूपमे विकसित भी किया , ताकि पर्यटक मांडू के साथ ही संग्रहालय भी देख सकें. धार जिले के वर्तमान कलेक्टर साहब को इस पार्क में बिल्कुल रूचि नहीं है ठेके पर चल रहे इस पार्क को पूर्व कलेक्टर आलोक कुमार सिंह की देख रेख में निर्माण कराया गया था. इसमें एक “म्यूजियम बनाया गया है जिसमे फॉसिल्स रखे हुए है , पार्क और गार्डन उसमें डेवलप किया गया है, इसके लिए बच्चो के लिए 20 रुपए का टिकट है व्यस्क 30 रुपए देकर देख सकते है। साथ ही डायनासोर के शेप में और अंडों के शेप में कुछ कमरे भी डेवलप किए गए हैं डायनासोर का इतिहास जानेंने ये पार्क तैयार किया गया था। पर्यटकों को लुभाने यहाँ कई ऐसी चीजें डेवेलोप कीहै जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। लेकिन ठेके पर चल रहे इस पार्क में भी विशाल काये डायनासोर के जीवाश्म और बूत अब घास खा रहे है।

यही नही मध्यप्रदेश में लगतार सतपुड़ा और विन्धयाचल पर्वत में मिल रहे अवशेष मध्यप्रदेश में एक कीर्ति मान बना रहे है । और इससे टूरिज़्म को आनेवाले समय मे अच्छा लाभ प्राप्त होगा साथ ही देश का दूसरा नेशनल फॉसिल पार्क अगर सही दिशा में चलते हुए बाघ में निर्मित होता है तो धार जैसे आदिवासी जिले को एक नई पहचान मिलेगी साथ ही रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इस पूरे जिले के विकास में कारगर साबित होंगे । इसके लिए फारेस्ट विभाग के जिला वनमंडल अधिकारी ए के सोलंकी मेहनत कर रहे है।

रिपोर्टर – प्रेरणा गौतम भोपाल मध्यप्रदेश

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