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पॉपकॉर्न लंग्स को कैसे पहचाने ये खतरनाक बीमारी आसानी से पकड़ में नहीं आती पॉपकॉर्न लंग्स को कैसे पहचाने ये खतरनाक बीमारी आसानी से पकड़ में नहीं आती

रोजमर्रा की ज़िन्दगी में स्वयं पर ध्यान ना दे पाना सबसे बड़ी समस्या है | इस कारण शरीर में अनेकों बीमारिया अपना घर बना लेती हैं | अब ऐसे में एक ऐसी बिमारी का पता चला है जो सुनने में थोड़ी अटपटी सी लगती है | जी हाँ हम बात कर रहे हैं पॉपकॉर्न लंग्स की | पॉपकॉर्न लंग का मतलब है ब्रोंकियोलाइटिस ओब्लिटरन्स | ये फेफड़ों में मौजूद सांस के रास्तों के उन हिस्सों की बीमारी है, जो बहुत छोटे होते हैं और नंगी आंखों से नहीं दिखते हैं | करीब 10 साल पहले पॉपकॉर्न में बटर का स्वाद लाने के लिए डायएसिटिल नाम का केमिकल मिलाया जाता था | डायएसिटिल एक पीले रंग का पदार्थ होता है | पॉपकॉर्न के अलावा इसका इस्तेमाल खाने की चीजों में बटर स्कॉच और कॉफी फ्लेवर लाने के लिए भी किया जाता है | ई-सिगरेट में भी इस केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है | डायएसिटिल सांस के छोटे-छोटे रास्तों में पहुंचकर फाइब्रोसिस यानी सिकुड़न कर देता है | चूंकि ये रास्ते छोटे हैं इसलिए लंबे समय तक डायएसिटिल का असर इनमें रहता है | ये रास्ते हमेशा के लिए सिकुड़ जाते हैं, इस वजह से खांसी होने लगती है | कुछ समय बाद सांय-सांय की आवाज आने लगती है जिसे वीज़िंग कहते हैं | इसके अलावा सांस फूलने की समस्या भी होने लगती है | जब से डायएसिटिल के साइड इफेक्ट के बारे में पता चला है, पॉपकॉर्न में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता | लेकिन फिलहाल डायएसिटिल ई-सिगरेट में इस्तेमाल हो रहा है जिसे बड़ी संख्या में युवा पीते हैं | पहले से धूम्रपान कर रहे लोग भी ई-सिगरेट इसलिए पीते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनका सिगरेट पीना छूट जाएगा | ई-सिगरेट में एक लिक्विड भरा होता, जिसे ई-जूस कहते हैं |

इस ई-जूस में आज भी कई बार डायएसिटिल का इस्तेमाल फ्लेवर्स को बनाए रखने के लिए होता है | ई-सिगरेट पीने के दौरान इसके फ्यूम्स के साथ डायएसिटिल फेफड़ों में पहुंच जाता है | इस वजह से ई-सिगरेट पीने वालों के फेफड़ों में भी ब्रोंकियोलाइटिस ओब्लिटरन्स की समस्या हो जाती है | आपको बड़ा दें की लंबे समय से हो रही धीमी खांसी और सांस फूलने की समस्या इस बीमारी के प्रमुख लक्षण होते हैं | इस बीमारी की शुरुआत में एक्स रे नॉर्मल आता है और फेफड़ों से जुड़ी दूसरी जांचें भी नॉर्मल आती हैं | लेकिन इस बिमारी का पता सीटी स्कैन से किया जाता है | बीमारी की पुष्टि करने के लिए बायोप्सी की जाती है | इस बीमारी में खांसी और सांस फूलने की दिक्कत होती है | खांसी के लिए कॉफ सिरप दिया जाता है और सांस फूलने पर मरीज को इनहेलर दिया जाता है | अगर बीमारी गंभीर हो गई है तो मरीज को सपोर्ट थेरेपी दी जाती है, जिसमें ऑक्सीजन सबसे ज्यादा जरुरत होती है और मरीज की हालत बिगड़ने पर फेफड़ों का ट्रांसप्लांट करना पड़ता है | अगर आप भी लापरवाही बरतते हैं तो अभी से सावधान हो जाइये और स्वयं को स्वस्थ रखिये |

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