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एक तवायफ के जूनून में लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दियाक तवायफ के जूनून में लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया, वो दौर ऐसा था जिसने सब कुछ पलट दिया

उत्तर प्रदेश का लखनऊ अपने तहजीब और मीठी बोली के लिए जाना जाता है | नवाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है और इसकी कई खूबसूरत इमारतें लोगों के दिलों में बसती हैं | लखनऊ ने अपने अंदर कई किस्से और कहानियां समेत रखी हैं जो बेहद खूबसूरत और यादगार हैं | ऐसे ही एक किस्से हम रूबरू होंगे | एक ऐसा किस्सा जिसने लोगों को अपनी और खींचा , जिसने सबको अपना बना लिया |

बात जरा पुरानी है, जब लखनऊ में चुनाव चल रहे थे तब एक बेहद खूबसूरत चर्चा भी चर्चा भी चल रही थी | दो ऐसे लोग चुनाव लड़ने जिसमे एक की पहचान पूरे लखनऊ भर में थी तो दूजे को इक्का दुक्का लोग ही जानते थे | ये दो लोग दिलरुबा जान और हकीम शम्सुद्दीन थे | दिलरुबा जान लखनऊ की जान थीं | इस शहर के लोग इनके लिए इस कदर दिवाने थे कि चुनाव में चुनाव लड़ने से मना कर दिया लेकिन उनके विपक्ष में कोइ तो चाहिए था जो उनके सामन खड़ा हो | अब ऐसे में तलाश शुरू हुई एक और नेता की जो इस चुनाव में अपनी दावेदारी पेश कर सके | बड़ा ढूंढने के बाद हकीम शम्सुद्दीन मिले जिन्हे उनके दोस्तों समझा बुझा के चुनाव के लिए राज़ी करवा लिया | अकबरी गेट के पास रहने वाले हकीम शम्सुद्दीन को उनके दोस्तों ने चुनाव लड़वा दिया। अब हकीम साहब के सामने एक मसला ये था कि उन्हें उनके परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों और इक्क-दुक्का मरीजों को छोड़कर कोई जानता ही नहीं था। इस बात से परेशान होकर हकीम शम्सुद्दीन अपने दोस्तों से कहते मुझे कहां फंसा दिया, मैं कैसे जीतूंगा? इस बात पर उनके दोस्त उनका हौंसला बढ़या । वहीँ दिलरूबा जान जो चौक इलाके के एक कोठे में रहती थी उन्हें सभी जानते थें और जीत उनकी पक्की थी | ऐसा लगने लगा कि वह मुकाबला किए बिना चुनाव जीत जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

जहां आजकल का चुनाव नारे और लुभावने मुद्दों के साथ होता है वहीँ उस दौर में चुनाव शेरों-शायरी से हुआ | इस समय की तरह तो उस वक्त सुविधांए तो थी नहीं, तब हकिम साहब के समर्थक दिवारों पर शायरी लिखकर दिलरुबा जान पर निशाना साधते और अपने दोस्त के लिए वोट मांगते। शहर के पुराने लोग बताते है कि शायरी कुछ इस तरह से थी-

हिदायत चौक के हर वोटरे-ए-शौकिन को,
दिल दीजिए दिलरुबा को और वोट शम्सुद्दीन को

जब यह बात दिलरुबा को पता चली तो उन्होंने भी बड़े ही शायराने अंदाज़ से इसका जवाब दिया

हिदायत चौक के हर वोटरे-ए-शौकिन को,
वोट देना दिलरुबा को नब्ज शम्सुद्दीन को

ढ़ेर सारी शेरो-शायरियां हुई , बाते हुई और इसके बाद चुनाव का प्रचार-प्रसार मोहब्बत के साथ ख़त्म हो गया | अब आया चुनाव का दिन जिसमे लोगों ने जमकर वोट किया। लोग बताते है कि दोनों के बीच कांटे की लड़ाई थी। चुनाव के बाद दोनों के समर्थक अपनी जीत का दावा करने लगे। आखिरकार रिजल्ट का दिन आया, मीठी तकरार के बीच हकीम साहब बड़ी मुश्किल से चुनाव जीत गए। अपनी हार की खबर सुनने के बाद दिलरुबा जान ने बस इतना कहा कि आज पता चल गया शहर में मरीज ज्यादा है। काश ऐसी ही तकरार आजके चुनाव में भी होती तो बात कुछ और ही होती |

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