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हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगाहमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा

“अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अड़ना सीखो जीना है तो मरना सीखो”

ये नारा हमेशा कर्पूरी ठाकुर जी की याद दिलाता है जो कि ग़रीब और पिछड़ा वर्ग को जगाने के लिए अपनी रैलियों में बोला करते थें | बहुत से लोग कर्पूरी ठाकुर जी के बारे में नहीं जानते हैं | 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में इनका जन्म हुआ था जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है | भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्होंने 26 महीने जेल में बिताए थे और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी | उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था |

कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे और इसी दौरान उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण मुंगेरी लाल आयोग के तहत् दिए और 1978 में 79 जातियां जिसमें पिछड़ा वर्ग के लिए 04% और अति पिछड़ा वर्ग के लिए 08% आरक्षण दिया गया |

कर्पूरी ठाकुर दूरदर्शी होने के साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थे | उनका एक किस्सा है जो मै आप सबको बताना चाहूंगा – आजादी के समय पटना की कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों की सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने एक क्रांतिकारी भाषण दिया कि “हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा” इस भाषण के कारण उन्हें दंड भी झेलनी पड़ी थी | एक कुशल वक्ता, नेता और एक ईमानदारी व्यक्ति थें | उनकी ईमानदारी के कई किस्से हैं | एक बार उनके बहनोई उनसे नौकरी की सिफारिश ले के आएं तो वे उनकी बात सुनकर गंभीर हो गए और अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।”

कहानी यही नहीं ख़त्म होती है 1977 में जेपी आवास पर जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन मनाया जा रहा था | देश भर से जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे | उन नेताओं में चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख शामिल थे. मुख्यमंत्री पद पर रहने बावजूद फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थे. उनकी दशा देखकर एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ इस बात को सभी समझ गए और हंसे फिर चंद्रशेखर अपनी सीट से उठे और अपने लंबे कुर्ते को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सामने की ओर फैलाया, बारी-बारी से वहां बैठे नेताओं के पास जाकर कहने लगे कि आप कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए, तुरंत कुछ रुपये रुपए इकट्ठा हो गए. उसे समेट कर चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी को थमाया और कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिए. कोई दूसरा काम मत कीजिएगा. चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा.’|

1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठ नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और राज्य के दो बार मुख्यमंत्री बने। लोकनायक जयप्रकाशनारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतक गुरु थे | रामसेवक यादव एवं मधुलिमये जैसे दिग्गज साथी थे। लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी कर्पुरी ठाकुर को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं और इन्होने बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में 1977 को आरक्षण की व्यवस्था की |

कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” एक ऐसी ही बात उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं। ऐसे ही कई किस्से हैं जिसे कम समय में बता पाना संभव नहीं है | 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को कर्पूरी ठाकुर का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ और एक सुनहरे युग का अंत हो गया |

ऐसी ही कुछ ख़ास जानकारियों से जुड़े रहने के लिए देखते रहिये माय भारत न्यूज़ |

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