कौन कहता है कि घने बादल सितारों को ढक लेते हैं कुछ ऐसे भी सितारे होते हैं जो घने बादलों से बिना डरे पूरे आसमान को जगमगा देते हैं |
मैं एक ऐसे ही सितारे के बारे में बात करने वाला हूँ जिसने पूरे बॉलीवुड में अपना डंका बाज़ा दिया |
चका-चौंध, नाम , शोहरत किसे नहीं पसंद लेकिन इसे पाने के लिए पूरी ताकत झोंक देना पड़ता है और इसी क्रम में आज मै बॉलीवुड की सबसे महान अभिनेत्री मधुबाला जी के बारे में बात करूँगा | 1950 के दशक के दौरान सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक भुगतान पाने वाले भारतीय मनोरंजनकर्ताओं में से एक, मधुबाला जी दो दशक से अधिक समय तक फिल्म में सक्रिय थीं और उन्होंने 70 से अधिक चलचित्रों में भूमिकाएँ निभाईं और 2008 में, एक आउटलुक पोल के परिणामों ने उन्हें बॉलीवुड के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्री के रूप में सूचीबद्ध किया। दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी, मधुबाला आठ साल की उम्र में अपने परिवार के साथ मुंबई चली गईं और कुछ ही समय बाद कई फिल्मों में छोटी भूमिकाओं में दिखने लगी | बालीवुड में उनका प्रवेश ‘बेबी मुमताज़’ के नाम से हुआ था | उनकी पहली फ़िल्म 1942 में बनी जिसका नाम “बसन्त” था | बॉम्बे टाकीज़ की संस्थापक देविका रानी फिल्म बसंत में उनके काम से प्रभावित हो करके उनका नाम मुमताज़ से बदलकर मधुबाला रख दिया जो की सुप्रसिद्ध हिंदी कवि हरिकृष्ण प्रेमी की कविता से लिया गया था |
(1960) में फ़िल्म मुगल-ए-आज़म के एक किरदार अनारकली के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया | मुगल-ए-आज़म उस समय भारत में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म के रूप में उभरी | मधुबाला जी के सफलता की शुरुआत 1948 में बनी फ़िल्म लाल दुपट्टा से हुई | इसके अलावा 1949 में, मधुबाला ने कमल अमरोही के “महल” फिल्म में एक फीमेल फेटले (जादूगरनी जो मन को मोह ले ) का किरदार निभाया था जो भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म बनी । इसके अलावा 1950 में रिलीज़ हुई , कॉमेडी-ड्रामा मूवी “हँसते आँसू में दिखाई” दीं, जो एक वयस्क प्रमाणन(Adult certification) प्राप्त करने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी।
एक ऐसा दौर आया जब मधुबाला की सफलता में गिरावट होने लगी और वो दौर था सन 1950 के मध्य का | उस समय की उनकी सारी फिल्मे फ्लॉप होने लगी जिसके कारण उन्हें “बॉक्स ऑफिस ज़हर” करार दिया गया | लेकिन वो हार कहाँ मानाने वाली थी, अप्रैल 1953 में, मधुबाला ने मधुबाला प्राइवेट लिमिटेड नामक एक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की और उसी प्रोडक्शन से एक फिल्म रिलीज़ की जिसका नाम था “नाता” | इस फिल्म को भी कोई ख़ास प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण मधुबाला को नुक्सान की भरपाटी करने के लिए अपना बंगला बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। वो कहते हैं ना सफलता असफलता के बाद ही आती है | सन 1955 में फ़िल्म “मिस्टर एंड मिसेज” रिलीज़ हुई और उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुइ जिससे मधुबाला का स्टारडम फिर से स्थापित हो गया |
1960 में आयी के.आसिफ की फ़िल्म मुगल-ए-आज़म को मधुबाला के करियर में “ताज गौरव” के रूप में वर्णित किया है | इस फिल्म को बनाने में पूरे 16 साल लग गए और इसी दौरान मधुबाला का रिश्ता उनके पति किशोर कुमार से टूट गया | यह फिल्म मधुबाला के लिए मिल का पत्थर साबित हुइ और हिंदी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए गल-ए-आज़म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता |
1962 में जारी मधुबाला प्राइवेट लिमिटेड की तीसरी और आखिरी प्रस्तुति, पठान थी लेकिन यह बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। दो साल के विश्राम के बाद, मधुबाला ने 1964 में शरबी मूवी को पूरा किया | वो फिल्म उनके जीवनकाल में उनकी अंतिम रिलीज बन गई। 36 साल की उम्र में 22 फरवरी 1969 की आधी रात को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गयी | 1971 में, मधुबाला की मृत्यु के दो साल बाद , अधूरी एक्शन फिल्म ज्वाला रिलीज हुई जिसमे उन्हें मुख्य भूमिका के रूप में देखा गया और बॉडी डबल्स की मदद से उस फिल्म को पूरा किया गया।
वो यादें कुछ खट्टी कुछ मीठी थीं लेकिन हमें उनसे कुछ ना कुछ ज़रूर मिला | ऐसी ही खूबसूरत यादों के साथ हम फिर मिलेंगे |