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किशोर कुमार का एक गीत 5 रुपया 12 आना का अनसुना किस्साकिशोर कुमार का एक गीत 5 रुपया 12 आना का अनसुना किस्सा

वो कहते है ना की ज़माना लौट के ज़रूर आता है और फिर यादों में बस जाता है | एक ऐसी ही याद हम लेकर के आये हैं अपने शो “वो यादें” में |

किशोर कुमार को कौन नहीं जानता है , एक सफल गायक, गीतकार , कलाकार और निर्देशक जिन्होंने ना जाने कितने हिट सांग्स और मूवीज़ इस बॉलीवुड इंडस्ट्री को दिए | उन्होंने बंगाली, हिन्दी, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में गाना गाया था | सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए उन्हें 8 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले और सबसे ज्यादा फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड भी इन्होने ही बनाया ।
किशोर साहब ने पहली बार बतौर कलाकार फ़िल्म शिकारी (1946) में काम किया और देव आनन्द साहब की फ़िल्म जिद्दी (1948) में बॉलीवुड सिनेमा के लिए पहली बार गीत गाया | गीत से याद आया की किशोर कुमार का एक गीत “पांच रूपया बारह आना” के पीछे भी एक अनसुना किस्सा है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं |

दरअसल ये किस्सा कॉलेज के उन दिनों का है जब किशोर कुमार पढ़ा करते थें | हर बच्चे की तरह वो भी अक्सर कॉलेज कैंटीन में खाना खाने जाया करते थे और साथ में दोस्तों को भी खिलाया करते थें | उस टाइम खाना 10-20 पैसे में मिल जाता था लेकिन ये 10 पैसा एक बड़ा अमाउंट था | जब पैसे नहीं होते थे तो उधारी से भी काम चल जाया करता था | अब उधारी बढ़ने लगी और बढ़कर के 5 रुपया 12 आना हो गयी | अब कैंटीन का मालिक हर रोज़ उन्हें 5 रुपया 12 आना के लिए टोकने लगा | जब-जब कैंटीन वाला टोके तब-तब वो टेबल पर बैठ कर गिलास और चम्मच के साथ कई धुनों में 5 रुपया 12 आना गा-गा कर उसको अनसुना कर दिया करते थें | बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पाँच रुपया बारह आना का बहुत ही भली-भांति प्रयोग किया। बहुत कम लोगों को पाँच रुपया बारह आना वाले गीत की यह मूल कहानी पता होगी | 1940 से 1987 के बीच किशोर कुमार ने अपने करियर के दौरान लगभग 2700 से भी अधिक गाने गाए |

किसी भी सफल व्यक्ति के पीछे एक संघर्ष ज़रूर जुड़ा हुआ होता है | किशोर साहब ने भारतीय सिनेमा के उस स्वर्ण काल में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारा बन चुके थे। उस दौर में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का बोलबाला था और उसमे अपनी जगह बनाना बहुत बड़ी बात थी | अपने गीतों से किशोर कुमार लोगो के दिलो में उतरने लगे और 1957 में बनी फ़िल्म “फंटूस” में
“दुखी मन मेरे ” गीत ने उनको चमकता हुआ सितारा बना दिया और उस गाने ने अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा।

इसपर एक और किस्सा याद आया जिसमे मनोज कुमार साहब किशोर कुमार को लेकर एक यादगार किस्सा सुनाते हैं। एक बार उनकी फ़िल्म ‘ उपकार ‘ के लिए किशोर कुमार को गाना गाने के लिए आमंत्रित किया तो वह यह कहकर मना कर देते हैं कि वे तो फ़िल्म के हीरो के लिए ही गाने गाते हैं, किसी खलनायक पर फ़िल्माया जाने वाले फ़िल्म पर नहीं । लेकिन ‘ उपकार ‘ का यह गीत “कसमे वादे प्यार वफ़ा” जब हिट हुआ तो किशोर कुमार मनोज कुमार के पास आए और कहने लगे इतने अच्छे गाने का मौका मैंने छोड़ दिया। इसके साथ ही उन्होंने यह स्वीकार करने में भी देर नहीं की कि मन्ना डे ने जिस खूबसूरती से इस गाने को गाया है ऐसा तो मैं कई जन्मों तक नहीं गा सकूंगा। अच्छा ही हुआ कि मैने इस गाने को नहीं गाया नहीं तो लोग इतने अच्छे गीत में मन्ना डे की इस खूबसूरत आवाज से वंचित रह जाते।

वो यादें कुछ खट्टी कुछ मीठी थीं लेकिन हमें उनसे कुछ ना कुछ ज़रूर मिला | ऐसी ही खूबसूरत यादों के साथ हम फिर मिलेंगे |

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