इतिहास गवाह रहा है कि इतिहास में कुछ न कुछ गहरे राज़ ज़रूर छिपे हुए होते हैं और उलझे हुए भी | एक ऐसे ही राज़ के बारे में हम भी बात करेंगे | एक ऐसी इमारत जिसको 1783 ई. में अकाल के दौरान लोगों को रोज़गार देने के लिए बनाया गया था जो तुर्की के कांस्टेनटिनोपल के दरवाजों के समान दिखाई देता है जिसे इस्तांबुल में सब्लिम पोर्टे (बाब-इहुमायूं) के आधार पर बनाया गया था | इसका निर्माण नवाब आसफउद्दौला ने करवाया जिसके कारण कई बेरोज़गार लोगों को रोज़गार मिला | तुर्की गेट यानी रूमी दरवाज़ा को ऐसा माना जाता है कि यह गेट कॉन्स्टेंटि नोपल के एक ऐतिहासिक गेट के अनुरूप बनाया गया था । रूमी का तात्पर्य रुम से है । इसलिए, भारत में “रूमी दरवाजे” का अंग्रेजी में शाब्दिक अनुवाद “तुर्की गेट” है।
ये अवधी वास्तुकला का एक उदाहरण है जिसने लखनऊ को एक पहचान दिया | पुराने लखनऊ की खुशबु इस दरवाज़े से होकर ही गुज़रती है | ये गेट बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा के बीच स्थित है |