कल क्या हुआ था और आज क्या हो रहा है इसके बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन कल और आज को आपस में जोड़कर अभी में बदलना और आप लोगो तक इसे पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है | आज हम बात करेंगे अमित शाह के 2010 वाले काले साल की , ED की , CBI की और विपक्ष में बैठी पार्टियों की |
आज भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी के बाद अगर किसी शख्स को बेहद पावरफुल माना जाता है तो वो हैं देश के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह। अमित शाह को राजनीतिक विश्लेषक भाजपा का चाणक्य भी मानते हैं। कहा यह भी जाता है कि वर्तमान भाजपा सरकार में प्रधानमंत्री मोदी के बाद सबसे ज्यादा फैसले लेने का हक़ अमित शाह को ही है। लेकिन देश के गृहमंत्री अमित शाह के लिए साल 2010 से 2012 का समय काफी चुनौतीपूर्ण रहा था। क्योंकि साल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस को साल 2010 में CBI के द्वारा ओपन कर दिया गया था और उस समय सरकार कांग्रेस की थी | 2010 में सीबीआई ने शुक्रवार के दिन विशेष अदालत में एक आरोप पत्र दायर किया, जिसमें अमित शाह पर धारा 302 (हत्या), 120 बी (साजिश), 341 (गलत तरीके से रोकना), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना, 364, 365 और 368, 384 (जबरन वसूली) और 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत आरोप लगाए गए। इन आरोपों के चलते अमित शाह को तीन महीने जेल में रहना पड़ा | इसके बाद अक्टूबर 2010 से सितम्बर 2012 तक उन्हें गुजरात की सीमा से दूर रहने को कहा गया था। 2012 तक अमित शाह गुजरात से बाहर ही रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही उनका गुजरात आना हुआ। सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी एनकाउंटर मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर मुम्बई में की गई थी।
आज जिस प्रकार अरविन्द केजरीवाल ,मनीष सीसोदिया और संजय सिंह पर आरोप लगे हैं और उन्हें जांच एजेंसियों ने अपने कब्ज़े लिया है ठीक उसी प्रकार 2010 में अमित शाह पर भी आरोप लगे और 5 साल बाद जाँच एजेंसियों से उन्हें गिरफ़्तार किया | गिरफ़्तारी से ठीक पहले अमित शाह ने कहा था कि, ” “घटना पांच साल पहले हुई थी। लेकिन सीबीआई ने इतनी जल्दबाजी की और उन्होंने मुझे जवाब देने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं दिया। मैं सभी आरोपों का जवाब दूंगा और उन लोगों को बेनकाब करूंगा जो इसके के पीछे हैं।” आगे उन्होंने ने कहा था कि, “एजेंसी पहले ही इस मामले में 30,000 पन्नों की चार्जशीट तैयार कर चुकी है। वे मेरे सामने पेश होने की समय सीमा समाप्त होने के कुछ ही घंटों में मुझे आरोपी के रूप में दिखाते हुए आरोप पत्र कैसे दाखिल कर सकते हैं?” इसके जवाब में उस समय के कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि, “चार्जशीट रातों-रात नहीं बनती। चार्जशीट सबूतों का एक संग्रह है… यहां पांच-छह महीने की जांच में सीबीआई को अमित शाह के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले हैं।” कल जो था वो आज हो गया और जो ज़माना बीत गया उसका ही आगाज़ हो गया | आज तमाम विपक्षी पार्टियां सरकार और जांच एजेंसियों पर आरोप लगा रही हैं कि वे सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं लेकिन 2010 में भी यही एजेंसियां थीं और सरकार कांग्रेस की थी तो क्या 2010 में कांग्रेस ने जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल किया था क्योंकि अदालत ने अमित शाह को 2014 में आरोप मुक्त करके बरी कर दिया था | उस समय के केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई द्वारा गुजरात के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह को आरोपी बनाए जाने से कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है | कांग्रेस ने शाह को आरोपी नहीं बनाया है, यह सीबीआई है जिसने गुजरात के पूर्व मंत्री के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया है। सीबीआई ने शाह को आरोपी बनाया है, इसलिए उन्हें कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए और जो कुछ भी कहना है, वह अदालत को बताना चाहिए।” लेकिन उस समय के भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने ठीक आजके सिनेरिओं की तरह उस समय कहा था कि, “मध्य प्रदेश और गुजरात सीबीआई के रडार पर हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश एंगल (फर्जी मुठभेड़ मामले में) की बिल्कुल भी जांच नहीं की जा रही है क्योंकि कांग्रेस वहां सत्ता में है।” इसी प्रकार आजकी सरकार के बारे में भी कहा जा रहा है | लेकिन कार्यवाही सरकार नहीं बल्कि जांच एजेन्सिया कर रही हैं |
क्या था सोहराबुद्दीन शेख का पूरा मामला जिसने अमित शाह को जेल तक पहुंचा दिया था ?
ये मामला एनकाउंटर के कुछ हफ्तों बाद शुरू हुआ था जिसमे सोहराबुद्दीन के भाई रबाबुद्दीन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा | इस पत्र में उन्होंने लिखा कि वह सोहराबुद्दीन की मौत को लेकर गुजरात पुलिस के बयान से सहमत नहीं हैं | इसके साथ ही उन्होंने सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी के (उस वक्त) गायब होने पर भी चिंता जताई | इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन के मारे जाने और कौसर बी के गायब होने के मामले में गुजरात पुलिस को जांच के आदेश दिए थे | जिसके बाद पुलिस ने कहा कि, ’23 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख अपनी पत्नी कौसर बी के साथ एक बस में हैदराबाद से अहमदाबाद जा रहा था | रात के करीब 1:30 बजे, गुजरात पुलिस के एंटी-टेरर स्क्वॉड (ATS) ने महाराष्ट्र के सांगली में बस रुकवाई | इसके बाद ATS ने सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी को बस से उतारा | 3 दिन बाद यानी 26 नवंबर 2005 की सोहराबुद्दीन की गोली लगने से मौत हो गई, जिसे पुलिस के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल डीजी वंजारा ने एनकाउंटर करार दिया | पुलिस ने अपने बयान में कहा, ”शेख अहमदाबाद के नरोल इलाके से ऑपरेट कर रहा था | जब पुलिस ने उसे विशाला सर्कल के पास मोटरसाइकल पर देखा, तो उसे रोकने की कोशिश की | मगर जब वो नहीं रुका, तो पुलिस वालों पर उसने फायरिंग की | पुलिस वालों ने अपनी रक्षा के लिए जो कार्रवाई की, उसमें वो मारा गया |” सोहराबुद्दीन को लेकर तीन अलग-अलग राय थीं | कोई उसे जबरन वसूली करने वाला बताता था, किसी की नजर में वह आतंकवादी था, तो कोई उसे भ्रष्ट पुलिस वालों का गुर्गा मानता था | 2002 से 2003 के बीच सोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति और मोहम्मद आजम (जो बाद में सीबीआई के लिए अहम गवाह बना) ने एक गैंग बनाया था | यह गैंग उदयपुर, अहमदाबाद और उज्जैन के मार्बल व्यापारियों और फैक्ट्री मालिकों से वसूली करता था | सोहराबुद्दीन पर नेशनल सिक्यॉरिटी एक्ट समेत करीब 50 मामले चल रहे थे | डीजी वंजारा ने उसे अंडरवर्ल्ड के साथ रिश्ते रखने वाला शार्प शूटर बताया था | वंजारा के मुताबिक, वो आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर कुछ बड़े राजनेताओं की हत्या करने की साजिश बना रहा था | सीबीआई की एक चार्जशीट (जिसके हिस्से को टाइम्स ऑफ इंडिया में छापा गया था) के मुताबिक, सोहराबुद्दीन आईपीएस अधिकारी अभय चुडासमा का गुर्गा था | अब कल क्या था और आज क्या है ये सिर्फ आप जानते हैं | जुड़े रहिये माई भारत के साथ |