उत्तर प्रदेश की राजनीति भारत की राजनीति का भाग्य तय करती है | इसी लिए उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश कहा जाता है | यहाँ पर कभी सपा, कभी कांग्रेस , कभी बसपा तो अब बीजेपी का राज है | लेकिन राजनीति में राज करने के लिए राजनीति करनी पड़ती है | अब ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अब अपना जाल फैलाना शुरू कर दिया है | बीजेपी और सपा ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दिया है लेकिन जब बसपा ने लिस्ट जारी किया तो सबके होश उड़ गए | होश उड़ेंगे भी क्यों नहीं | बात वोटर्स की है , चुनाव की है और जीत की | आम तौर पर मायावती उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में कभी कभी भी लेट नहीं होती थी लेकिन इस बार रणनीति के तहत उन्होंने अपना पूरा टाइम लिया और इस टाइम को टाइम बम बना कर विपक्षी पार्टियों पर फोड़ दिया | बहनजी ने ऑफिशियली कोई लिस्ट जारी नहीं की | बल्कि वह अपने संगठन के नेताओं से मिल रही हैं और उन्हें चुनाव लड़ने के पांच प्रत्याशियों का नाम सामने आया, बल्कि वह अपने संगठन के नेताओं से लिए अपनी स्वीकृति दे रही हैं। और जैसे ही बहनजी की पार्टी के पांच प्रत्याशियों का नाम सामने आया विपक्ष परेशान
हो गया। मायावती ने कहा था कि वो ना एनडीए के साथ जाएगी और ना ही इण्डिया अलायंस के साथ | हालांकि इंडिया अलायंस में शामिल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के तमाम नेता यह कह रहे हैं कि बहनजी से बातचीत हो रही है | लेकिन मायावती अपने जन्मदिन से ही यह कही हुई नज़र आ रही है कि वो अकेले ही चुनाव लड़ेंगी और किसी भी पार्टी का दामन नहीं थामेंगी | लेकिन बहन जी की पार्टी के पांच प्रत्याशियों का नाम जब बाहर आया तो विपक्ष परेशान हो गया। आपको बता दें कि मायावती ने चार ऐसे जिलों से अपने प्रत्याशी उतारे हैं जहां मुस्लिम वोटर्स का एक हुजूम है | पांच में से चार सीटों पर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिए हैं | और यही है विपक्ष के डर की सबसे बड़ी वजह |
आपको बता दें कि यूपी में मुस्लिम आबादी 18 से 20 फीसदी मानी जाती है और 18 से 20 फीसदी मुस्लिम आबादी पर विपक्ष में समाजवादी पार्टी भी अपना दावा करती है कि मुस्लिम उसके साथ रहेगा। कांग्रेस भी उम्मीद जताती है कि मुस्लिम उसके साथ जाएगा और मायावती जिन्होंने दो हज़ार 7 में मुस्लिम और दलित और ब्राह्मणों को जोड़ने का काम किया था, वह भी दावा करती हैं कि उनकी पार्टी को ही मुस्लिम वोट देगा, उन पर ही विश्वास करेगा। प्रत्याशियों के नामों के ऊपर गौर करेंगे तो आपको दिखाई देगा कि.. भारतीय जनता पार्टी, जिसका एजेंडा साफ है, हिंदुत्व और विकास, इस दो एजेंडे की वजह से उसके ऊपर मुस्लिम वोट बैंक उसके साथ आ जाएगा। उसको कोई उम्मीद नहीं है। फिर भी बीजेपी यह कोशिश कर रही है कि मुस्लिम समाज उसके साथ है और इसलिए अल्पसंख्यक मोर्चा एक के बाद एक अभियान चला रहा है। कोइ मुस्लिम समूह बीजेपी के साथ आएगा या नहीं आएगा यह कह पाना ज़रा मुश्किल है |
समाजवादी पार्टी जो की मुस्लिम वोटर्स को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है वह इस बार बदलती हुई नज़र आ रही है क्योंकि समाजवादी पार्टी की जो लिस्ट अब तक जारी हुई उसमे कुल 30 प्रत्याशी हैं | जिसमे केवल दो मुस्लिम प्रत्याशी हैं | पहली इकरा… जो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आती हैं और दूसरा अफजाल अंसारी जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में गाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे। इसका मतलब की 28 प्रत्याशी हिन्दू हैं | आपको बता दे कि क्यों एनडीए या इण्डिया अलायंस बसपा को अपने खेमे में लाना चाहती है | बात 2022 की है जब आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव में अखिलेश यादव दो हज़ार 19 में सांसद बने लेकिन दो हज़ार 22 के चुनाव में उन्होंने तय किया कि वह करहल विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे। चुनाव लड़े, चुनाव जीते और डिसाइड किया कि वह सांसद नहीं बल्कि विधायक रहेंगे और इस वजह से आजमगढ़ की सीट खाली हो गई और जब वहां उपचुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी ने निरहुआ को टिकट दिया और समाजवादी पार्टी का गेम उन्होंने तहस नहस कर दिया क्योंकि मायावती ने गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा था और गुड्डू जमाली कुल 2,66,000 वोट पाकर समाजवादी पार्टी का पूरा गेम प्लान बिगाड़ दिया। कुछ इसी तरह का गेम प्लान आने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष को बिगड़ने का डर बहनजी से लग रहा है और इसी वजह से कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे बार बार बहनजी से अपील कर रहे हैं कि बहन जी को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और उन्हें अलायंस में आ जाना चाहिए।
अब मायावती अगर चुनाव मैदान में अकेले उतरती हैं और उन्होंने अगर विपक्ष का गेम बिगाड़ा तो निश्चित तौर पर इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है | यह भी हो सकता है कि बहन जी अलायंस में चली जाए | हो यह भी सकता है कि बहन जी अकेले चुनाव लड़ें | क्योंकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है | लेकिन यह तय हो चुका है कि बहन जी की निगाह उन सीटों पर है, जहां वह जीत सकती हैं और बहन जी पर निगाह बीजेपी की भी है। क्योंकि बीजेपी कह रही है कि अगर मायावती इंडिया अलायंस के साथ जाती हैं तो इंडिया अलायंस को कुछ वोटों का फायदा हो सकता है। कुछ सीटों पर इसका असर हो सकता है। वहीं कांग्रेस भी यह मानती है यूपी में बीजेपी को बहुत कड़ी चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में अगले कुछ दिन बेहद जरूरी होंगे, क्योंकि मायावती अगर अपने फैसले पर अडिग रहती हैं तो निश्चित तौर पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को अपना समीकरण फिर से सेट करना पड़ेगा। अब बदलती हुई राजनीति क्या होगा यह तो बता पाना मुश्किल है लेकिन बसपा के कारण चुनाव में जो वोटों पर असर पड़ेगा उसको आप साफ़-साफ़ देख सकेंगे |