परिवार में चाहे जितनी भी फुट हो लेकिन संकट के समय परिवार एक हो ही जाता है | ऐसे में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल पर भरोसा जताया है। शायद इस भरोसे से उनकी डूबती हुई नैया पार लग जाए | बदायूं में पूर्व सांसद सलीम शेरवानी के सपा से त्यागपत्र देने के बाद बदले राजनीतिक समीकरण के कारण सपा की डगमगा रही नैया को पार लगाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है। अखिलेश ने पहले यहां पर धर्मेद्र यादव को मैदान में उतारा था, किंतु पूर्व सांसद सलीम शेरवानी के इस्तीफा देने से यहां सपा की राजनीतिक चौसर बिगड़ गई है। शेरवानी का पूरा दबदबा बदायूं सीट पर है और वह यह संभावना है कि वह पार्टी बदलकर यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। जिसके कारण धर्मेंद्र की मुश्किले बढ़ जातीं। क्योंकि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा की संघमित्रा मौयं ने धर्मेंद्र को भारी वोटों से हराया था | इसलिए अखिलेश ने माहौल को देखते हुए टिकट में बदलाव किया है | आपको बता दें संघमित्रा स्वामी प्रसाद मौर्य की पुत्री हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य अब सपा से अलग हो चुके हैं। मौर्य का भी यहां के बड़े हिस्से में प्रभाव है। यही कारण है कि अब सपा ने धर्मेंद्र के बजाय शिवपाल को इस मुश्किल सीट पर उतारा है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि शिवपाल का जमीनी नेटवर्क मजबूत है। ऐसे में बदायूं की विपरीत परिस्थितियों में भी शिवपाल ही पार्टी को यहां मजबूत स्थिति में ला सकते हैं। ऐसे में स्थिति को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने स्थानीय संसदीय क्षेत्र में प्रवीण सिंह ऐरन को प्रत्याशी बनाया है। क्योंकि प्रवीण सिंह ऐरन भाजपा से आठ बार विजयी रहे सांसद संतोष कुमार गंगवार को वर्ष 2009 के चुनाव में हराकर विजय प्राप्त की थी मगर इसके बाद समीकरण पक्ष में नहीं बने। यही कारण है कि सपा इस बार भी प्रवीण सिंह ऐरन को लेकर पूछने समीकरण के माध्यम से चुनाव में जीत दर्ज करने की कोशिश करेगी | इन सब के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य की पुत्री और भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य ने शिवपाल सिंह यादव पर तंज कसते हुए कहा की, ‘भाजपा पदाधिकारियों, जन प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से घबराकर पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव मैदान छोड़कर भाग गए। अब चाचा आए हैं, 2019 के चुनाव में फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी से 4,03,950 वोट से हारे थे। बदायूं के कार्यकर्ता मिलकर चाचा की हार का अंतर और बढ़ाएंगे।’ अब देखना यह होगा की दोतरफा वार से अखिलेश यादव खुद को कैसे बचाएंगे और समाजवादी पार्टी की नैया को कैसे पार लगाएंगे |