कल्याण सिंह: एक सत्ताधारी और हिंदू हृदय सम्राट
राम मन्दिर के नायक कल्याण सिंह की आज 92वीं जयंती है। उनका जन्म 1932 में हुआ था, और 89 वर्षों के बाद उनका निधन हो गया। उन्होंने दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला और हिंदू हृदय सम्राट के रूप में उच्च प्रशंसा प्राप्त की।कल्याण सिंह ने अपने उदार और सख्त नेतृत्व के साथ अपने धर्म, देश, और समाज के प्रति समर्पित रहे। उनके नेतृत्व में ही यूपी में भाजपा ने इतिहास रचा और उत्तर प्रदेश में पहली बार बहुमत से सरकार बनाई। उनका योगदान राम मंदिर आंदोलन के संजीवनी रूप में था, जिसने देशभर में हिंदू एकता और जागरूकता को उत्तेजना किया। कल्याण सिंह ने हमेशा अपने नीति और उदारता के साथ अपने उसूलों को बनाए रखा, जो उन्हें एक श्रेष्ठ नेता बनाता हैं। उन्होंने अपने पदों पर रहते हुए कभी भी समझौता नहीं किया और अपनी ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता के लिए जाने गए। कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने यूपी में ऐतिहासिक जीत हासिल की, जिससे वह मुख्यमंत्री बने। उनके शासनकाल में राम मंदिर आंदोलन ने अपने चरम पर पहुंचा और उसका परिणाम सारे देश में महसूस हुआ। उन्होंने हिंदू धर्म के लिए आंदोलन का सूत्रधार बनकर अपने नेतृत्व में भाजपा को मजबूती दी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन किया।कल्याण सिंह की नेतृत्व और राजनीतिक यात्रा में उन्होंने कभी भी अपने नीतिगत स्थानों और मूल्यों से चलने का साहस नहीं हारा और आखिरी समय तक देश और समाज के सेवा में लगे रहे। कल्याण सिंह की आज की जयंती पर हम सभी उनके महान योगदान को याद करते हैं और उनके उदार और सजीव सिद्धांतों को प्रेरणा स्वरूप मानते हैं। उनकी आत्मा को श्रद्धांजलि।
राम मन्दिर के नायक कल्याण सिंह की आज 92वीं जयंती है | कल्याण सिंह का जन्म 1932 में हुआ था और 89 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया | इस दौरान उन्होंने बहुत प्रकार के कार्य किये | वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे | अपने पद पर बने रहने के लिए उन्होंने कभी भी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया और ना ही राजनीति में सौदा किया। एक इंटर कॉलेज के शिक्षक से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक के संघर्षों भरे सफर की डगर बेहद कांटों भरी रही। जिसके दम पर वे हिंदू हृदय सम्राट तक कहलाए गए।
कल्याण सिंह बचपन से ही हिन्दुतत्ववादी व्यक्ति थे जो अपने धर्म का सम्मान करते थे और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते थे। राजनीति में पहली बार उन्हें 1967 में अतरौली से विधायक बनने का मौका मिला जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी और निष्ठां से निभाया | इसी दौरान उन्होंने गांव-गांव घूमकर भाजपा की जड़ें मजबूत कीं और जब देश में भाजपा का उभार हुआ तो 1991 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वे मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह 1996 में जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तभी इस दौरान 1999 में भाजपा से मतभेद हो गया और उन्होंने भाजपा को छोड़कर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। इसके बाद 2004 में कल्याण सिंह अटल बिहारी जी की के सानिध्य आये और चुनाव जीतकर सांसद भी बने लेकिन उचित सम्मान न मिलने से आहत कल्याण 2009 में दूसरी बार भाजपा छोड़ मुलायम सिंह यादव के करीब गए लेकिन मुलायम सिंह यादव ने भी उनसे किनरा कर लिया | नरेंद्र मोदी के आग्रह पर 2013 में कल्याण सिंह की बीजेपी में पुनः वापसी हुई और 2014 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी और तब कल्याण सिंह को सम्मान मिला और वह पहले राजस्थान फिर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने |
आपको बता दे की कल्याण सिंह अपनों की पहचान और दोस्ती निभाने के लिए भी जाने जाते थे। बहन बेटियों की शादियों में जाना, मुलाकात होने पर विदाई देना उनकी खासी पहचान थी। इसके अलावा सभाओं में लोगों से जोड़ने के लिए वे यहां तक कह देते थे कि राम लला से बात हो गई है, बारिश की एक बूंद नहीं गिरेगी। जब अयोध्या में घटनाक्रम हुआ तो लोग उनके गांव के बाग से मिट्टी तक ले गए। देश में उनके पोस्टर खूब बिके और जब वे मुख्यमंत्री बने और लोग उनसे जिले में किसी काम के लिए कहते तो वे जवाब देते थे कि उनके लिए पूरा यूपी उनका अलीगढ़ है। सभी के लिए समान काम होगा। इस दौरान उन्होंने अपने जिले में तहसील कोल का नया भवन, ताला नगरी औद्योगिक क्षेत्र, दीनदयाल अस्पताल, स्टेडियम, आईटीआई आदि का निर्माण कराया। इसके अलावा वे अपने गांव परिवार व क्षेत्र के लोगों का विशेष ध्यान जरूर रखते थे। इनकी यही ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता ने इन्हें औरों से अलग बना दिया |
अयोध्या ढांचा विध्वंस की जिम्मेदारी लेते हुए कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी | 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। उनकी बदौलत यह आंदोलन यूपी से निकला और देखते-देखते पूरे देश में बहुत तेजी से फैल गया। उन्होंने हिंदुत्व की अपनी छवि जनता के सामने रखी। इसके साथ ही उन्हे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी साथ मिला जिससे आंदोलन ने और जोर पकड़ लिया। बता दें कि कल्याण सिंह शुरू से आरएसएस के जुझारू कार्यकर्ता थे। इसका पूरा फायदा यूपी में भाजपा को मिला और 1991 में यूपी में भाजपा की सरकार बनी थी।
कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा के पास पहला मौका था जब यूपी में भाजपा ने इतने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। जिस आंदोलन की बदौलत भाजपा ने यूपी में सत्ता पाई उसके सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे, इसलिए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य नेता दावेदार थे ही नहीं। उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज दिया गया। कल्याण सिंह के कार्यकाल में सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहा। कल्याण सिंह के शासन में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस हो गया। यह ऐसी घटना थी जिसने भारत की राजनीति को एक अलग ही दिशा दे दी। इसके बाद केंद्र से लेकर यूपी की सरकार की जड़ें हिल गईं। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली और 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद उनका कद और सुदृढ़ और नामचीन हो गया। अपने आखिरी पलों में वह राम मंदिर निर्माण को नहीं देख सके और 21 अगस्त 2021 को उनका निधन हो गया |