भारत के इतिहास में आज का दिन महान क्रान्तिकारियों के बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहा है.देश की आजादी में बिना किसी गम और दुख के अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले भगत सिंह,राजगुरू और सुखदेव को आज ही के दिन 1931 में फांसी की सजा दे दी गई थी.

बताया जाता है कि कोर्ट ने तीनों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च तय की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को भारत में माहौल बिगड़ने का डर था, इसलिए नियमों को दरकिनार कर एक रात पहले ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया,क्योंकि देश की आजादी के लिए उस समय ऐसे अनेक क्रान्तिकारियों के दिलों में वो ज्वाला भड़क उठी थी जिसके लिए वो किसी भी कीमत को चुकाने को तैयार हो चुके थे.

अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा दिए जाने का जो कारण बताया था वो ये था कि तीनों ने मिलकर अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या की थी. 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव जो कि अब पाकिस्तान में है में जन्मे भगत सिंह महज 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग कांड हुआ.इस कांड मे अनेकों निर्दोष भारतीयों की हत्या सुनकर भगत सिंह के मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था.

काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया.इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए. 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया.इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं,जिसके बाद ये चोटें ही उनकी मौत का कारण बनी.

इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की.17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके,ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गए, जहां कोई नहीं था.

बम फेंकने के बाद भगत सिंह बिना किसी से डरे भागने की जगह वहीं खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी.करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया,साथ ही बकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली.

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