देश भर में सिर्फ 2 दिन के बाद मनाए जाने वाले होली के त्योहार को लेकर लोगों में अभी से ही एक्साइटमेंट देखा जा रहा है.देश भर में 28 और 29 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाना है.रंगों के इस खूबसूरत त्योहार का लोग काफी इंतजार करते नज़र आते हैं.कोरोना के चलते होली पर इस बार कुछ खास सावधानियां बरती जाएं जिसके चलते ये भी कहा जा सकता है कि सावधानी के साथ और कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए पूरी मस्ती के साथ होली के त्योहार को मनाया जा सकता है.

कोरोना के साथ होली का त्योहार मनाने के लिए सबसे पहले कोशिश करें आप बाहरी रंगों का इस्तेमाल ना करें. कोरोना काल में बाहरी रंग उचित भी नहीं है साथ ही आपकी स्किन के लिए काफी हानीकारक साबित होते हैं. आप, घर बैठे बेहद आसानी से हर्बल और नैचुरल रंग बना सकते हैं.

होली का त्योहार इस साल 28 और 29 मार्च को मनाया जाने वाला है.हर साल जश्न से मनाया जाने वाला त्योहार होली की बेहद खास बातें है. क्या आप जानते हैं कि होली पर रंग क्यों लगाया जाता है? होली पर रंग लगाने की परंपरा कब शुरू हुई? होली पर गुझिया क्यों बनाई जाती है? नहीं जानते तो आइए हम बताते हैं…

होली को लेकर कई तरह की बातें कही जाती है.कुछ का मानना है कि पहली होली भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ खेली थी.धार्मिक किताबों में भी ब्रज की होली का प्रमाण मिलता है.कुछ लोगों का मानना है कि द्वापर युग में होली पर रंग लगाने की परंपरा शुरू हुई. पहले फूलों, चंदन और कुमकुम से होली खेली जाती थी. फिर धीरे धीरे रंग भी इसमें शामिल हो गए.

कहते हैं आर्यों में भी होली पर्व का प्रचलन था. होली अधिकतर पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था. होली का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है. वहीं मुगल काल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था. प्रमाण के मुताबिक, मुगल बादशाहों ने भी होली खेली थी. प्राचीन काल में यज्ञ के बाद गाने गाए जाते थे.

अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे. इतना ही नहीं अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है. शाहजहां के ज़माने में होली को आब-ए-पाशी नाम से मनाया जाता था.

होली पर बनने वाली गुझिया का भी अपना इतिहास है.ये भारतीय नहीं है. कहा जाता है कि गुझिया तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों से आई है.होली पर इसका भोग लगाने की भी परंपरा है. इसको बनाने के तरीके भी बहुत से हैं. सूखे मेवे और खोए से बनी गुझिया का स्वाद अपने आप में अनोखा है. ये होली पर ही विशेष रूप से क्यों बनाई जाती है इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है.

होली के दिन विशेष रूप से गाए जाने वाले फाग के गीत कई सालों से चले आ रहे हैं. गाने-बजाने का ये कार्यक्रम होलिका दहन के बाद से ही शुरू हो जाता है. होली में मटकी फोड़ने का भी प्रचलन है. मोहल्ले के गोविंदाओं की टोली जोर शोर से मटकी फोड़ कार्यक्रम में हिस्सा लेती है.

हमारे देश में विविध ढंग से होली मनाई और खेली जाती है, जैसे कि कुमाऊं की बैठकी होली, बंगाल की दोल-जात्रा, महाराष्ट्र की रंगपंचमी, गोवा का शिमगो, हरियाणा के धुलंडी में भाभियों द्वारा देवरों की फजीहत, पंजाब का होला-मोहल्ला, तमिलनाडु का कमन पोडिगई, मणिपुर का याओसांग, एमपी मालवा के आदिवासियों का भगोरिया आदि. लेकिन ब्रजभूमि की होली; विशेषकर बरसाने की लट्ठमार होली तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.

महाकवि रसखान लिखते हैं- फागुन लाग्यो जब तें तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है, नारि नवेली बचैं नहिं एक बिसेख यहै सबै प्रेम अच्यौ है.सांझ सकारे वहै रसखानि सुरंग गुलाल ले खेल रच्यौ है, कौ सजनी निलजी न भई अब कौन भटू बिहिं मान बच्यौ है.

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