एक तरफ कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस के मामले ज्यादातर राज्यों में मिल रहे हैं. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर इन मरीजों की संख्या के बारे में केंद्र सरकार के पास जानकारी नहीं है.इतना ही नहीं ब्लैक फंगस के मामले पिछले साल से कोरोना मरीजों में देखने को मिल रहे हैं,बावजूद इसके संक्रमण को रोकने वाली एंटी फंगल दवा की उपलब्धता पर ध्यान नहीं दिया गया.

ब्लैक फंगस पर विशेषज्ञों का कहना है कि दवा के साथ-साथ लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास भी नहीं किया गया और अब दूसरी लहर में यह अचानक से बढ़े तो सरकार भी सचेत हुई है. मौजूदा स्थिति यह है कि देश के ज्यादातर राज्यों में ब्लैक फंगस को रोकने वाला एंटी फंगल इंजेक्शन अम्फोटेरीसीन बी बाजार से गायब हो चुका है, रेमेडिसिवर की तरह इसकी कालाबाजारी भी काफी तेजी से बढ़ गई है.

वहीं समय पर दवा न मिलने की वजह से मरीजों को ऑपरेशन कराने की नौबत आ रही है,दिल्ली एम्स के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि उनके यहां भी दवा की काफी कमी है.दवा न मिलने की वजह से लोगों के ऑपरेशन करने पड़ रहे हैं और उनके यहां भी यही हालात हैं.

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का कहना है कि ब्लैक फंगस का केंद्रीय स्तर पर डाटा नहीं है. हालांकि कुछ राज्यों से सूचना जरूर मिली है कि कहीं 2 हजार तो कहीं 500 लोगों में ये संक्रमण हुआ है. आईसीएमआर ने इन मरीजों के रजिस्ट्रेशन पर काम शुरू कर दिया है.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. मनीष मुंजाल ने बताया, हमारे पास कोविड के साथ ब्लैक फंगस का पहला केस 30 नवंबर 2020 को आया था. जब 32 वर्षीय दिल्ली निवासी राजेश ने कोरोना संक्रमित होने के बाद कॉकटेल एंटीवायरल दवाओं का सेवन किया और निगेटिव होने के बाद ब्लैक फंगस की चपेट में आ गया.उस वक्त तक हमारे लिए ये स्थिति आश्चर्यजनक थी क्योंकि कोविड-19 के इस प्रभाव के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया था.

एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि ब्लैक फंगस को रोकने के लिए पहले दिन से ही सतर्कता जरूरी है.पहले तो लोग कोशिश करें कि उन्हें कोरोना न हो,इसके लिए कोविड सतर्कता नियमों का पालन करें.

अगर कोरोना होता है तो ब्लैक फंगस न हो, इसका विशेष ध्यान रखें. अनियंत्रित मधुमेह, स्टेरॉयड का ज्यादा सेवन इत्यादि नहीं होना चाहिए,अगर ब्लैक फंगस होता है तो पहले ही दिन उपचार मिलना जरूरी है.
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