क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी भारत में वित्तीय समावेशन की सफलता की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं…इन क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी की पहुंच ने आसानी से ग्रामीण भारत को अधिक सशक्त बनाया है….आज हम आपको बताएंगे कि कोआपरेटिव सोसाइटी होती क्या हैं…इनका उद्देश्य क्या हैं….

भारत में क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी….भारतीय वित्तीय समावेशन कहानी की सफलता का एक अभिन्न अंग बन गए हैं….अब यह बहुत स्पष्ट है कि क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी का राष्ट्रीय विकास में बहुत अधिक महत्व है…..क्रेडिट कॉपरेटिव की मदद के बिना भारत में लाखों लोगों को वित्तीय मदद की बहुत कमी होगी….क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी मजबूत प्रतिबद्धता और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ स्थानीय समुदायों और स्थानीय विकास में सक्रिय भाग लेते हैं……देश के सामाजिक, आर्थिक और लोकतांत्रिक ढांचे में उनकी उपस्थिति सामंजस्यपूर्ण विकास लाने के लिए आवश्यक है….और यह कि उन्हें पोषण और उनके आधार को मजबूत करने के लिए शायद सबसे अच्छा औचित्य है…..ये बैंक दौड़ में जीतने के लिए निश्चिंत हैं क्योंकि वे लोगों से लोगों और लोगों के लिए हैं…लेकिन वहीं दूसरी ओर कुछ गैर सरकारी संस्थाएं अपने निजी स्वार्थ के लिए इन क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी पर तरह-तरह के आरोप लगाया करती हैं….और कॉपरेटिव सोसाइटी की विश्वसनीयता और भरोसे को खत्म करने का प्रयास करती हैं…..इन सबके बावजूद देश में क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं….आम जनता को इन क्रेडिट कॉपरेटिव इकाईयों का काफी लाभ भी मिल रहा हैं….भारत में क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी को बनाना आसान हैं….और इसमें सदस्यता के लिए कोई बाधा नहीं है…

भारत में क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी की कमजोरी ये है कि ये किफायती होने के साथ आकार में छोटे होते हैं. और केवल कागज पर ही कार्य करते हैं….ये सोसाइटी अभी भी सरकार, आरबीआई और नाबार्ड से मिलने वाली सुविधाओं पर बहुत भरोसा करते हैं….इसके साथ ही अधिकांश क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी पेशेवर प्रबंधन की कमी से भी पीड़ित हैं.. यह खुदरा और वाणिज्यिक बैंकिंग है जो जमा लेते हैं और पैसा उधार देते हैं….ये छोटे आकार की इकाइयां हैं जो शहरी और गैर-शहरी दोनों केंद्रों में काम करती हैं….वे पेशेवर और वेतन वर्गों के अलावा औद्योगिक और व्यापार क्षेत्रों में छोटे व्यापारियों को ऋण उपलब्ध कराती हैं…क्रेडिट कॉपरेटिव सोसायटी सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत आती हैं….

क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी कब बनी
देश में औद्योगिक क्रांति के कारण आर्थिक औऱ सामाजिक असंतुलन के बांद साल 1901 में एडवर्ड लॉ ने कॉपरेटिव सोसायटी संगठनों की संभावना और सफ़लता के लिए समिति बनाई थी……और इस समिति रिपोर्ट के आधार पर 1904 में कॉपरेटिव साख अधिनियम पास किया गया था……तभी से सहकारी आंदोलन का शुरु हुआ…..आपको बता दें सहकारी शब्द का अर्थ होता है-साथ मिलकर काम करना….इसका मतलब है ऐसे लोग जो समान आर्थिक उद्देश्य के लिए साथ मिलकर काम करना चाहते हैं…..वे समिति बना सकते हैं….इसे कॉपरेटिव सोसाइटी कहते हैं…..यह ऐसे लोगों की सोसाइटी होती है जो दूसरों के आर्थिक हितों के लिए काम करते हैं….यह अपनी सहायता खुद और दूसरों की मदद से करते हैं….सहकारी समिति में कोई भी सदस्य व्यक्तिगत लाभ के लिए कार्य नहीं करता है। इसके सभी सदस्य अपने-अपने संसाधनों को इकट्ठा करके अधिकतम इस्तेमाल कर कुछ लाभ प्राप्त करते हैं…. जिसे वह आपस में बांट लेते हैं…..वहीं इन क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी का सबसे ज्यादा फायदा छोटे उद्यमियों,किसानों को मिलता है….जो आसानी से बिना किसी कोलेटरल के लोन ले सकते हैं….इन क्रेडिट सोसाइटी में बैंकों जैसा कोई झंझट नहीं होता….और कम ब्याज दर पर ये लोन मिल जाता हैं…

वहीं पीएम मोदी ने भी उम्मीद जताई है कि सहकारिता से देश की आर्थिकी में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है….उन्होंने ये भी कहा सहकारिता की सफलता का पहला मंत्र खुद को दूर रखकर लोगों को आगे लाना है….और लाभ पहुंचाना…..
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